भारत स्वाभिमान मुरादाबाद ०३-१०-२०११
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वास्तविक सूत्र:
इलाहाबाद बोर्ड के अंतर्गत शिक्षण संस्थान भी अब सी.बी.एस.सी की तर्ज पर अंग्रेजी माध्यम से कक्षाए संचालित करेगी,जानकारी से दुखद आश्चर्य हुआ/ सर्वप्रथम तो यह की अंग्रेजी भारत के कौन से प्रान्त की मातृभाषा हैं,दूसरा यह की बोर्ड भारत की कौन सी और भाषाओ को सिखाने का काम कर रहा हैं? यदि कुछ तथाकथित ज्ञानियो की यह बात स्वीकार भी कर ली जाये कि अंग्रेजी उन्नति के लिए आवश्यक हैं तो हिंदी,मराठी,तेलगु,तमिल,बंगला,उड़िया,मलयालम आदि भारतीय भाषाए गैर जरुरी क्यों हैं जिनमे हमारे नागरिक कि आत्मा बस्ती हैं ,दूसरे जो व्यक्ति उन्नति करेगा वह इसका प्रयोग भारत के बाहर करेगा?यदि भारत मैं करेगा तो उसे उन व्यक्तियों से संपर्क साधना होगा जो भारतीय यानि निजी भाषाओ के जानकर हैं,जिसमे यह अज्ञानी हैं/ अगर शासन का प्रयास निचले स्तर तक अंग्रेजी भाषा के विस्तार कि योजना हैं तो यह एक सहज प्रश्न हैं कि हम क्या स्वतंत्र हैं अथवा अपनी इच्छा से ब्रिटिश साम्राज्य का उपनिवेश बनने को तत्पर हैं?
उन तथाकथित ज्ञानियो से जिनका मानना हैं कि अंग्रेजी के बिना विकास संभव नहीं हैं,प्रश्न हैं कि यदि ऐसा होता तो इस भाषा का जनक इंग्लैंड सबसे आगे होता लेकिन ऐसा हैं क्या? ब्रिटेन के रोजगार के साधन इतने कम हो चुके हैं कि वे अपने बेरोजगारों को खपाने के लिए भारतीयों जो योग्यता व कौशल में उनसे कही आगे हैं को अपने यहाँ नौकरी देना बंद करने को विवश हुए हैं/ कभी मैनचेस्टर का कपडा मशहूर था,आज वह धूल के नीचे कही खो गया हैं/कोई नया अन्वेषण किये ब्रिटेन को वर्षो गुजर गए/ परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में ब्रिटेन का कही नामोनिशान नहीं हैं/ कहने का अभिप्राय यह हैं कि अगर गुलामी भी करनी थी तो ऐसी कि तो करते जिसका अपना कोई अस्तित्व व विकास का इतिहास होता,आप तो ऐसी भाषा को शिरोधार्य कर रहे हैं जिसे 'ब्रिटेन' के अंग स्कॉट्लैंड व आयरलैंड में बोलना व पढना वहा के नागरिक अपमानजनक मानते हैं/हम कैसे देशभक्त हैं जो अपनी भाषाओ पर उस भाषा को श्रेष्ठता देने का अपराध कर रहे हैं जिसका अस्तित्व अपने ही देश में नहीं हैं/क्या हम अपने हाथ से ही पराधीनता का जुआ अपने गले में ही नहीं डाल रहे हैं?
संयम वत्स 'मनु'
८४ घंटा किसरोल मुरादाबाद

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