आज मैंने सूर्य से बस ज़रा सा यूँ कहा
‘‘आपके साम्राज्य में इतना अँधेरा क्यूँ रहा ?’’
... ...
तमतमा कर वह दहाड़ा—‘‘मैं अकेला क्या करूँ ?
तुम निकम्मों के लिए मैं ही भला कब तक मरूँ ?
आकाश की आराधना के चक्करों में मत पड़ो
संग्राम यह घनघोर है, कुछ मैं लड़ूँ कुछ तुम लड़ो।’’
हैं करोड़ों सूर्य
हैं करोड़ों सूर्य लेकिन सूर्य हैं बस नाम के
जो न दें हमको उजाला वे भला किस काम के ?
जो रात भर लड़ता रहे उस दीप को दीजे दुआ
सूर्य से वह श्रेष्ठ है तुच्छ है तो क्या हुआ ?
वक्त आने पर मिला ले हाथ जो अँधियारे से
सम्बन्ध उनका कुछ नहीं है सूर्य के परिवार से।।
दीपनिष्ठा को जगाओ
यह घड़ी बिल्कुल नहीं है शांति और संतोष की
‘सूर्यनिष्ठा’ सम्पदा होगी गगन के कोष की
यह धरा का मामला है घोर काली रात है
कौन जिम्मेदार है यह सभी को ज्ञात है
रोशनी की खोज में किस सूर्य के घर जाओगे
‘दीपनिष्ठा’ को जगाओ अन्यथा मर जाओगे।।
बालकवि बैरागी
‘‘आपके साम्राज्य में इतना अँधेरा क्यूँ रहा ?’’
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तमतमा कर वह दहाड़ा—‘‘मैं अकेला क्या करूँ ?
तुम निकम्मों के लिए मैं ही भला कब तक मरूँ ?
आकाश की आराधना के चक्करों में मत पड़ो
संग्राम यह घनघोर है, कुछ मैं लड़ूँ कुछ तुम लड़ो।’’
हैं करोड़ों सूर्य
हैं करोड़ों सूर्य लेकिन सूर्य हैं बस नाम के
जो न दें हमको उजाला वे भला किस काम के ?
जो रात भर लड़ता रहे उस दीप को दीजे दुआ
सूर्य से वह श्रेष्ठ है तुच्छ है तो क्या हुआ ?
वक्त आने पर मिला ले हाथ जो अँधियारे से
सम्बन्ध उनका कुछ नहीं है सूर्य के परिवार से।।
दीपनिष्ठा को जगाओ
यह घड़ी बिल्कुल नहीं है शांति और संतोष की
‘सूर्यनिष्ठा’ सम्पदा होगी गगन के कोष की
यह धरा का मामला है घोर काली रात है
कौन जिम्मेदार है यह सभी को ज्ञात है
रोशनी की खोज में किस सूर्य के घर जाओगे
‘दीपनिष्ठा’ को जगाओ अन्यथा मर जाओगे।।
बालकवि बैरागी
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