नई दिल्ली। अब लगभग यह साफ होता जा रहा है कि केंद्र सरकार काला धन पर बाबा रामदेव के एक भी प्रमुख सुझाव पर अमल करने नहीं जा रही है। केंद्र सरकार ने रामदेव को मनाने के लिए केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड [सीबीडीटी] के अध्यक्ष की अगुआई में जो उच्चस्तरीय समिति गठित की थी वह काला धन पर रोक लगाने के लिए पुराने आजमाए तरीके के ही पक्ष में है। समिति ने फैसला किया है कि वह आरोपियों को फांसी की सजा देने का सुझाव नहीं देगी।
शुक्रवार को समिति की चौथी बैठक थी जिसमें रिपोर्ट में दिए जाने वाले कई सुझावों पर सहमति बन गई। सूत्रों के मुताबिक कानून मंत्रालय के प्रतिनिधियों के साथ विचार-विमर्श के बाद यह राय बनी कि आर्थिक अपराधों के लिए न तो फांसी की सजा दी जा सकती है और न ही आजीवन कारावास। अभी आरोपियों को अधिकतम सात वर्ष तक की सजा देने का प्रावधान है। न्यूनतम सजा की सीमा को बढ़ाकर सात वर्ष करने का सुझाव दिया जा सकता है।
बैठक में यह भी राय बनी कि काला धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित नहीं किया जा सकता। काला धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करना 'नारेबाजी' के तौर पर तो ठीक लगता है, लेकिन इसे लागू करना असंभव है। अगर काला धन विदेश में है तो हम किस प्रकार उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर सकते हैं। समिति काला धन की समस्या से निपटने के लिए कोई नया कानून बनाने के भी खिलाफ है।
समिति का मानना है कि मौजूदा कानून पूरी तरह से सक्षम है। इसे और मजबूत बनाया जा सकता है। प्रशासन को बेहतर बनाकर और इससे जुड़ी जांच एजेंसियों की क्षमता को बढ़ाकर बेहतर परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।
समिति ने काला धन को बाहर निकालने के लिए स्वैच्छिक आय घोषणा योजना भी लाने की संभावना को खारिज कर दिया है। विगत में कई बार भारत सरकार ने काला धन को बाहर निकालने के लिए इस फार्मूले को आजमाया है।
समिति के अधिकांश सदस्यों का मानना है कि विगत में इस तरह की स्कीमों का बहुत लाभ नहीं हुआ है। समिति में यह आम राय बनी कि काला धन से संबंधित मामले में आयकर दाता के पिछले छह वर्ष से पुराने रिकार्ड को भी खंगालने की छूट मिलनी चाहिए। अब तक सिर्फ 6 वर्ष तक के मामले की ही जांच-पड़ताल करने का अधिकार आयकर अधिकारियों के पास है। समिति यह सुझाव देगी कि किस तरह से विभिन्न एजेंसियों के नेटवर्क को मजबूत किया जाए और काला धन पर इनके बीच बेहतर सामंजस्य बिठाया जाए।
एसआइटी का मुद्दा मुख्य न्यायाधीश के हवाले
विदेशों में जमा काले धन की जांच के लिए विशेष जांच दल [एसआइटी] गठन का आदेश वापस लेने की केंद्र सरकार की मांग पर सुप्रीमकोर्ट के दो न्यायाधीशों में मतभिन्नता सामने आई है। न्यायमूर्ति अल्तमश कबीर ने केंद्र सरकार की अर्जी को सुनवाई योग्य करार दिया, जबकि न्यायमूर्ति एसएस निज्जर ने कहा कि अर्जी विचार योग्य नहीं है।
न्यायाधीशों के बीच मतभिन्नता के बाद पीठ ने मामला मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया है, ताकि वे बड़ी पीठ का गठन करें।
सुप्रीम कोर्ट ने राम जेठमलानी की काले धन को वापस लाने की मांग पर काले धन की जांच के लिए एसआइटी गठित की थी। कोर्ट ने एसआइटी का अध्यक्ष सुप्रीमकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बीपी जीवन रेड्डी व उपाध्यक्ष सेवानिवृत्त न्यायाधीश एमबी शाह को बनाया था।
सुप्रीमकोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा गठित विभिन्न विभागों के मुखियाओं की दस सदस्यीय हाईपावर कमेटी में दोनों न्यायाधीशों के अलावा आइबी प्रमुख को शामिल करते हुए इसे काले धन की जांच की एसआइटी घोषित किया था। सुप्रीमकोर्ट ने इस एसआइटी को देश विदेश में काले धन की जांच के विस्तृत अधिकार दिये थे।
केंद्र सरकार ने सुप्रीमकोर्ट में अर्जी दाखिल कर एसआइटी गठन का गत चार जुलाई का आदेश वापस लेने की मांग की थी। सरकार की दलील थी कि आदेश व्यावहारिक नहीं है। कोर्ट ने एसआइटी को सुपर पावर दे दी है। सरकार का तर्क था कि एसआइटी में आइबी प्रमुख को भी शामिल कर दिया है जबकि आइबी प्रमुख का नाम और पहचान उजागर नहीं की जाती।
सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को एसआइटी का अध्यक्ष बनाये जाने पर भी आपत्ति उठाई थी। केंद्र की इस अर्जी का जेठमलानी की ओर से विरोध किया गया। जेठमलानी के वकील का कहना था कि केंद्र सरकार की अर्जी विचार योग्य नहीं है। सरकार इस रिकाल अर्जी की आड़ में कोर्ट के आदेश का रिव्यू मांग रही है। इसके लिए उसे रिव्यू याचिका दाखिल करनी चाहिए। जेठमलानी की ओर से दलील दी गयी थी कि कोर्ट पहले इस का फैसला करे कि केंद्र सरकार की अर्जी विचार योग्य है या नहीं। कोर्ट ने आज इसी मुद्दे पर खंडित आदेश दिया।
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