कोई ऊँगली भी न उठाये

भारत स्वाभिमान मुरादाबाद                                                                  ॐ                                                                  २०-०१-२०१२ 

अपने आस-पड़ोस में अक्सर आपने देखा होगा की कुछ लोग पालतू जानवर पालने के शौक़ीन होते है. पालने के पीछे कारण अलग-अलग हो सकते हैं, कुछ लोग अपने शौक को पूरा करने के लिए, कुछ में प्राणियों के प्रति प्यार और भी कुछ अन्य कारण जो दिखाई तो नहीं देते किन्तु समझ में आ ही जाते हैं. 
ऐसा ही कुछ सरकार के कारनामो से लगता है. सरकार के पास भी बहुत से ऐसे साधन हैं जिनका सीधा साधा मतलब तो सब जानते हैं और उनके पीछे आधार भी यही बताया जा सकता है जिससे सब सहमत होते दिखाई पड़ते हैं. मीडिया, कानून और सरकारी एजेंसिया या कह लीजिये जांच एजेंसिया इसी दायरे में काम करती हुई दिखाई देती हैं. जिससे यह आभास होता रहे की यह जनता की भलाई के लिए होती हैं. कानून व्यवस्था को रखने के लिए इनका सदुपयोग होता है, किन्तु सरकार के आड़े वक्त में यह सरकारी ढाल का भी काम करते हैं और कोई भी अंगुली नहीं उठा पाता.
योग गुरु स्वामी रामदेव के बारे में भी कमोवेश सरकार का यही रुख उजागर होता है. जब तक लगा कि स्वामी जी योग सिखा कर आम जनता को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाकर उनका जीवन स्वस्थ बना रहे हैं और हमसे कुछ भी नही मांग रहे है, तब तक तो सब ठीक रहा, परन्तु जैसे ही स्वामी जी ने अपने सन्यास धर्म को निभाते हुए राष्ट्र धर्म निभाने का बीड़ा उठाया और उसके लिए स्वयं कष्ट सहकर देश को जगाने का राष्ट्रव्यापी  कार्य किया और भ्रष्टाचारियो के विरुद्ध देशभक्तों को जोड़ कर एक जगह एकत्र करने का अभियान छेड़ा सरकार को तो जैसे लगा कि स्वामी जी सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ रहें हैं और फिर तो उसे अपने तरकश के सभी तीर छोड़ने कोई देर नहीं लगी. फिर तो चाहे मीडिया हो या जाँच एजेंसिया या फिर अपने लोग सभी को एक ही काम में लगा दिया कि बस जैसे भी हो स्वामी जी को भी सबसे बड़ा भ्रष्टाचारी साबित करना है. चाहे कुछ भी करना पड़े. ऐसी ही कोशिश अन्ना हजारे के अनशन से पूर्व कि कोशिशो से भी सरकार कि ओछी हरकतों, उसकी गन्दी मानसिकता का पता चला था, लेकिन जिस दिन जनता अपने भले बुरे का अंतर समझ कर अन्ना के समर्थन  में सडको पर उतरी, तो सरकार को लगा कि कुछ गलती हो रही है. एक चीज़ सरकार को क्यों समझने में देर लगी कि जनता सरकार के नहीं भ्रष्ट व्यवस्थाओ के विरोध में उतरी है. रामदेव के प्रति भी सरकार ऐसा ही मानती है कि वह सरकार विरोधी हैं पर वास्तव में रामदेव भ्रष्ट व्यवस्था और भ्रष्टाचारियो से भारत की जनता को मुक्ति दिलाना चाहते हैं, किन्तु यदि सरकार और भ्रष्टाचार एक दुसरे के पूरक हो रह गएँ हैं तो इसमें रामदेव का क्या दोष? वह तो भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े हैं, जबकि सरकार को लगता है कि उसके खिलाफ खड़े हैं. 
आज़ादी के बाद से जितना पिछले कुछ सालों में लोगो को भ्रष्टाचार से दो चार होना पड़ा है वह बेशक भयावह है और न ही यह एक दिन में हुआ है. इसलिए एक ही दिन में इसका निदान भी नहीं हो सकता लेकिन यदि इसको दूर करने के लिए रामदेव जैसे युग पुरुष जनता कि आवाज बन कर निकले हैं तो सरकार को उन्हें कहीं न कहीं फसाने के हथकंडे छोड़कर उनकी सलाह और जनता कि तकलीफों के बारे में सोचना चाहिए न कि उन्हें फेरा जैसे मामलो में उलझाकर जनता का ध्यान भटकाना चाहिए. जैसे जैसे लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े होकर आगे आते हैं. सरकार उनके खिलाफ खड़ी हो जाती है. जिसके फलस्वरूप रामदेव, बालकृष्ण आदि तक सरकार की सूची पहुँच गयी है. आने वाले समय में इस सूची में और कौन कौन से नाम जुड़ेंगे यह तो सरकार ही जाने, परन्तु सरकार का यह सोचना गलत है कि इससे डरकर लोग भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज़ नहीं उठाएंगे.
लेखक: हिमांशु कौशिक 
स्थान: मुरादाबाद 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया कमेंट्स हिंदी में दें, इस बॉक्स का प्रयोग करें:हिंदी टाइप रायटर

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...