काले धन के खिलाफ अपने आंदोलन के दौरान भले ही जून के महीने में दिल्ली पुलिस ने बाबा रामदेव और उनके समर्थकों को दिल्ली से बाहर खदेड़ दिया हो, लेकिन गेरुआ वस्त्रधारी संन्यासी ने भारत स्वाभिमान यात्रा को फिर शुरू कर सरकार के खिलाफ बिगुल फूंक दिया है.
रानी लक्ष्मीबाई की कर्मस्थली झांसी से शुरू हुई यात्रा के इटावा तक पहुंचने के एक महीने में बाबा ने लगातार कांग्रेस को उसकी हैसियत बताने की कोशिश की.
यात्रा को उत्तर प्रदेश के कस्बों में मिले व्यापक समर्थन के बाद बाबा आगे क्या मंसूबा पाल रहे हैं और सक्रिय राजनीति के प्रति उनका नजरिया कैसे बदल रहा है, इस बारे में बाबा रामदेव ने
इंडिया टुडे के प्रमुख संवाददाता
पीयूष बबेले से बेबाकी से बातचीत की.
रामलीला मैदान की घटना और उसके बाद आपसे जुड़े लोगों और संस्थाओं पर सरकार की तरफ से बैठी तमाम जांचों के बावजूद आपकी सभाओं में भीड़ उमड़ रही है? वह कौन-सी बात है जिससे बाबा का करिश्मा बरकरार है?
हमने लोगों को सपने दिखाकर या आश्वासन देकर अपने साथ नहीं जोड़ा. हमने प्रामाणिकता के साथ आरोग्य दिया. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर काले धन के प्रमाण पेश किए, कोई ख्याली पुलाव नहीं पकाया. वहीं, राजसत्ता ने लोगों को विकास के झूठे सपने दिखाए.
हमारे आंदोलन में कांग्रेस सरकार की बर्बरता की भूमिका रही. एक संन्यासी की हत्या का प्रयास हुआ. राजबाला की हत्या केंद्र सरकार ने की. आज कांग्रेस की विश्वसनीयता न्यूनतम स्तर पर आ गई है. कांग्रेस के पाप उसे खत्म कर देंगे. लोग सचाई जान रहे हैं और पहले से डेढ़ गुना लोग मेरे कार्यक्रमों में आ रहे हैं.
आगामी विधानसभा चुनावों पर आपकी यह यात्रा कितना असर डालेगी?
हम जनता के सामने तीन मुद्दे लेकर गए हैं- काला धन वापस लाओ, भ्रष्टाचार मिटाओ और व्यवस्था परिवर्तन करो. जो प्रत्याशी या पार्टी इन तीनों मुद्दों पर लिखित समर्थन देगी उसे हमारा समर्थन होगा.
अब तक कांग्रेस के अलावा बाकी पार्टियां हमारी मांगों से सहमति की बात कर रही हैं, इसीलिए मैंने यात्रा में अब तक कांग्रेस का विरोध किया है. लेकिन कांग्रेस का भी कोई प्रत्याशी इन मुद्दों पर हमारे साथ है तो उसे भी समर्थन होगा.
हमारे कार्यकर्ता पांच राज्यों में हर विधानसभा क्षेत्र में प्रत्याशियों को खुले मंच पर बुलाकर जनता के सामने उनकी राय लेंगे. खुले मंच पर होने वाले इन कार्यक्रमों में मैं खुद भी मौजूद रहूंगा.
लेकिन हिसार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार का सारा श्रेय तो टीम अण्णा ले गई? क्या अण्णा आंदोलन से आपके मतभेद हैं?
हिसार में चुनाव से एक महीने पहले से हमारे 1,000 कार्यकर्ता सक्रिय थे. एक लाख लोगों से हमारे कार्यकर्ताओं ने सीधे संपर्क किया और कांग्रेस के पाप सामने लाने के लिए पर्चे बांटे. जनता ने उसी के मुताबिक कांग्रेस को बुरी तरह से हराया.
वैसे भी मैं आंशिक तौर पर पिछले 20 साल से और पूर्ण रूप से पांच वर्ष से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा हूं. इसमें श्रेय लेने की बात कहां से आ गई? लेकिन तुलना की क्या बात करें, अण्णा जी का मैं बहुत सम्मान करता हूं, वे अलग तरह के आदमी हैं, सामाजिक आंदोलन से आए हैं.
अब जैसे रामलीला मैदान (अण्णा आंदोलन में) में जितने लोग इकट्ठा हुए थे उतने लोग तो रोज मेरे पास आते हैं. अब मान लीजिए अरविंद केजरीवाल जी सभा कर रहे हैं, उनके पास कितने लोग आ रहे हैं. उतने लोग तो मेरा स्वागत करने आते हैं. मैं 10 करोड़ लोगों की सभाएं ले चुका है. भारत स्वाभिमान का आंदोलन देश के 640 जिलों में फैला है.
इस आंदोलन से किसी आंदोलन की तुलना करना न्यायसंगत नहीं है. हमने भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन को पहले ही एक स्तर तक पहुंचा दिया था और जब अण्णा जी आए तो मैंने भी अंतिम समय में शामिल होकर उन्हें सहयोग दिया.
जहां तक मतभेद का सवाल है तो अकेला लोकपाल भ्रष्टाचार को दूर नहीं कर सकता. लोकपाल भ्रष्टाचार को मिटाने की दिशा में पहला कदम है. बाकी कानूनों को और व्यवस्था को भी मजबूत करना पड़ेगा, तभी बात बनेगी.
आपने केजरीवाल का जिक्र किया, उन्होंने एक बयान में कहा कि उनका आंदोलन लेफ्ट ऑफ दि सेंटर है, जबकि बाबा का आंदोलन राइट ऑफ दि सेंटर है. इस पर कोई टिप्पणी.
हां, मैं दक्षिणपंथी हूं. मैं आध्यात्मिक व्यक्ति हूं, मैं वामपंथी झुकाव के साथ विदेशी पैसे और पुरस्कार से आंदोलन चलाने वाला व्यक्ति नहीं हूं. मुझे समझ नहीं आता कि आरटीआइ में काम करने वाली संस्थाओं को विदेशों का सहयोग क्यों मिलता है. मुझे ज्यादा कुछ नहीं कहना है.
जब आपके पास 10 करोड़ लोगों का समर्थन है, तो खुलकर राजनीति में आने से हिचक कैसी?लोकतंत्र में राजनीति एक लंबी प्रक्रिया है, ऐसे में जो लोग लंबे समय से राजनीति में काम कर रहे हैं, उन्हें एक और मौका देना चाहता हूं. हमारी मांगें नहीं मानीं तो हम अगले लोकसभा चुनाव से पहले मजबूत प्रधानमंत्री के लिए कोई नाम पेश कर सकते हैं क्योंकि जब तक मुखिया मजबूत नहीं होता देश में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं आ सकता.
बात चाहे देश की हो या प्रदेश की और लोग भी यही चाहते हैं. अगले लोकसभा चुनाव में हम अपनी तरफ से प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी पेश करेंगे. उस व्यक्ति का पूरा ट्रैक रिकॉर्ड जनता के सामने होगा.
लेकिन प्रधानमंत्री का पद राष्ट्रपति पद जैसा नहीं है जहां एक नाम प्रस्तावित कर दिया जाए. उसे आप बहुमत दल का नेता कैसे बनवाएंगे? वैसे आपके मन में किसका नाम है?
मेरे दिमाग में 4-6 नाम हैं. लेकिन इनका खुलासा मैं अभी नहीं करूंगा. हां वह नाम मजबूत होगा, ईमानदार होगा और जनता उसे पसंद करेगी. जहां तक उसके चुने जाने का सवाल है तो इसके लिए बड़ी रणनीति बनाई जा रही है, चुनाव के समय देखेंगे कि कितनी पार्टियां उसका साथ देती हैं, जनता कितना साथ देगी. ये बहुत बड़ा मुद्दा होगा. लेकिन किसी व्यक्ति के नाम पर फिलहाल मैं मौन हूं. लेकिन आप ये मान लीजिए कि लोकसभा चुनाव से पहले बहुत बड़ा आंदोलन होगा.
राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने को लेकर आपकी क्या राय है?
अगर वे काले धन, भ्रष्टाचार और व्यवस्था परिवर्तन के तीन मुद्दों पर हम से सहमत हो जाते हैं, तो उनका प्रधानमंत्री बनने का सपना पूरा हो सकता है. हम एक बार उनको फिर से प्रपोज कर रहे हैं, अंतिम बार.
मैं उनसे पिछले साल भी मिला था और मैंने उनसे कहा था कि इन तीन मुद्दों पर आप अपना रुख प्रामाणिकता के साथ स्पष्ट करें. आपको लिखकर भी देना होगा और जनता के सामने अपनी नीयत साफ करनी पड़ेगी. अब उनके पास ये आखिरी मौका है.
आपने सुबह कहा कि मंदी के खिलाफ 80 देशों में हो रहे आंदोलन से बड़ा आंदोलन आप देश में खड़ा करेंगे? ये किस तरह का आंदोलन होगा.
दुनिया के कई देश दीवालिया होने की कगार पर हैं. अमेरिका जैसी महाशक्ति के हाल खराब हैं. अगर भारत में काला धन वापस नहीं आता तो यहां की अर्थव्यवस्था की हालत भी खराब होगी.
सरकार को गलत आर्थिक नीतियों से चेताने के लिए देश में आंदोलन की सख्त जरूरत है. आंशिक तौर पर पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले आंदोलन खड़ा होगा और बड़े रूप से लोकसभा चुनाव के पहले आंदोलन खड़ा होगा क्योंकि उससे पहले कितना भी बड़ा आंदोलन खड़ा कर लो, देश भूल जाता है.
ये माना जाए कि कालेधन के खिलाफ आंदोलन अंतरराष्ट्रीय शक्ल ले रहा है?
हमें जो दस्तावेज मिले हैं उसके मुताबिक अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा टैक्स हैवन बन गया है. स्विट्जरलैंड जैसे देश तो उसके सामने कुछ भी नहीं हैं. दूसरी तरफ अमेरिका खुद 1,000 लाख करोड़ डॉलर के कर्र्ज में डूबा है, फिर भी दुनिया की महाशक्ति बना हुआ है.
मेरा उद्देश्य भारत को विश्व महाशक्ति बनाना है, इसके लिए मैं पूरा जीवन समर्पित करने को तैयार हूं. इसके लिए किसी का भी विरोध करना पड़े और कोई भी परिणाम झेलना पड़े मैं तैयार हूं.
इस विरोध के बावजूद मैं कहूंगा कि अमेरिका में लोकतांत्रिक ढंग से विरोध करने का अधिकार भारत से बेहतर है. ब्रिटेन में भी हालात बेहतर हैं. हमारे यहां लोकतंत्र को सत्ता की दासी बना रखा है. इससे ज्यादा शर्मनाक क्या होगा.
साभार: आज तक
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